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तीन

विक्षनरी से

विशेषण

संज्ञा

संख्या

अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

तीन ^१ वि॰ [सं॰ त्रीणि] जो दो और एक हो । जो गिनती में चार से एक कम हो ।

तीन ^२ संज्ञा पुं॰

१. दो और चार के बीच की संख्या । दो और एक का जोड़ ।

२. उक्त संख्यासूचक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है—३ । यौ॰—तीन ताग = जनेऊ । यज्ञोपवीत । अ॰—ना में तीन तान गलि नाँऊँ । ना मैं सुनत करि धोराउँ ।—सुंदर॰ ग्रं॰, भा॰ १, (भू॰), पृ॰ ४८ । मुहा॰—तीन पाँच करना = इधर उधर करना । घुमाव फिराव या हुज्जत की बात करना ।

तीन ^३ संज्ञा पुं॰ सरयूपारी ब्राह्मणो में तीन गोत्रों का एक वर्ग । विशेष—सरजूपारी ब्राह्मणों में सोलह गोत्र होते है जिनमें से तीन गोत्रवालों का उत्तम वर्ग है और तेरह गोत्रवालों काट कुवरा वर्ग है । मुहा॰—तीन तेरह करवा = तितर बितर करना । इधर उधर छितराना या अलग अलग करना । उ॰—कियो तीन तेरह अबै चौका चौका लाय ।—हरिश्चंद्र (शब्द॰) । व तीन में, व तेरह में = जो किसी गिनती में न हो । उसे कोई पूछता न हो । उ॰—कुंभ कान नाम कहाँ पैये मोतें जानराय रुजु हुम मारे हैं न तेरह व तीन में ।—हनुमान (शब्द॰) ।

तीन ^४ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] तिन्नी का चावल ।

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